देशभक्ति का ऐसा था जज्बा, कश्मीर से लौटकर शादी की थी इच्छा
शहीद रमेश के साथ अपने फुर्सत के क्षण बिताने वाले उनके रिश्तेदारों और करीबी मित्रों ने बताया कि वह हमेशा कहता था कि जम्मू कश्मीर में जीवन की अनिश्चितता है। ऐसे में इस दौरान शादी करता है और उसे कुछ हो जाता है तो किसी लडक़ी के जीवन के साथ खिलवाड़ और अन्याय होगा।
रमेशकुमार को जितना सम्मान अपनी मातृभूमि और परिवार के लिए था, उतना ही सम्मान नारी शक्ति के रूप में उनकी अर्धांगिनी बनने वाली युवती के प्रति भी था। इसी का परिणाम था कि वह जम्मू-कश्मीर के अनिश्चितता भरे माहौल में पोस्टिंग के दौरान शादी नहीं करना चाहता था। रमेश ने अपने मित्रों को बताया था कि बीएसएफ में सेवाकाल में चार साल जम्मू कश्मीर में निकालना होता है, वह चार साल पूर्ण करते ही जैसे ही अन्य स्थान पर पोस्टिंग होगी वह शादी करेगा।
-कैसे कहें पिता से कि देश पर न्योछावर हो गया भाई
शहीद रमेश कुमार की शहादत ने जिलेवासियों को गौरवांवित किया हो, लेकिन नौ महीने कोख में रखकर अपने बेटे के लिए सपने बुनने वाली मां और बेटे के जीवन को लेकर हर पल चिंतित रहने वाले शहीद के पिता बाबूराम को अभी भी यह दुखद हादसा छिपाया गया है।
रमेशकुमार के बड़े भाई को कसनाराम को शनिवार को ही यह सूचना मिल गई थी और वह नम आंखों से अपने शहीद भाई के पार्थिव शरीर को लाने के लिए जम्मू कश्मीर चला गया। रमेश के चचेरे भाई प्रेमाराम ने बताया कि शहीद के मां-बाप को यह बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं कि उनका बेटा देश के काम आ गया है।
इसलिए दोनों को दो अलग-अलग अरठ में बने मकानों में रखा गया है। तीन भाइयों में रमेश सबसे छोटा भी था और मिलनसार व मृदुभाषी होने के कारण सबका प्रिय भी। मंझला भाई वजाराम पुणे में काम करता है और वहां से रवाना हो गया है। रमेश की मंगेतर वजाराम की साली ही है। ऐसे में मातम पोसिन्द्रा में उसके ससुराल में भी फैला होगा। रमेश की शहादत की सूचना पर उसकी मंगेतर के तो सपनों को साकार होने से पहले ही तोड़ दिया होगा।
कहकर गया था कि शादी में आना
शहीद रमेश कुमार एक महीने पहले सिरोही में ही था। 15 अगस्त को भी यही थे। पामेरा में पटवारी के रूप में तैनात उनके मित्र नानाराम ने बताया कि हाल ही मे सिरोही आने पर वह उनसे सिरोडी मे मिले थे। दोनों वहां पर मोटरसाइकिल की सर्विसिंग करवाने के लिए पहुंचे थे। इस दौरान दो मित्र और साथ में थे। सभी ने वहां नाश्ता किया। रमेशकुमार ने नानाराम को उसके बडे भाई की गत वर्ष अप्रेल में हुई शादी में नहीं आने पर शिकायत भी दर्ज करवाई। साथ ही अगले साल होने वाली उनकी शादी में आने के लिए समय रिजर्व करने को भी कहा। नानाराम चौधरी ने बताया कि रमेशकुमार ने एक दिन झरने में नहाने का कार्यक्रम बनाने को भी कहा और उनको अपने सिरोही के नम्बर भी दिए। नानाराम ने बताया कि रविवार को रमेश की शहादत को सुनकर पूरी रात बेचैन रहे और हर पल उसके साथ हॉस्टल और उसके बाद बिताए हुए पल याद आते रहे।
कभी खौफ नहीं दिखा आंख में
जम्मू कश्मीर में पोस्टिंग का सुनकर हर एक मित्र और रिश्तेदार एक बारगी वहां पर जीवन की अनिश्चितता को लेकर सिहर उठता था, लेकिन वहां की बातें करके शहीद रमेश कुमार के चेहरे पर शिकन तक नहीं आती थी। नागाणी के ही विद्यालय में नवी तक उनके साथ पढाई करने वाले डूंगराराम ने बताया कि वह हमेशा ही आर्मी में जाने का इच्छुक था। जम्मू में पोस्टिंग पर मौत का भय आंख में कभी दिखा नहीं। जबकि हमेशा यह आत्मविश्वास था कि उन्हें हमेशा सतर्क रहना पड़ता है और वह हमेशा आतंकवादियों से सामना करने के लिए तैयार रहते हैं।
माता-पिता नहीं थे सेना में भेजने को तैयार
रमेशकुमार के माता-पिता उसके आर्मी में जाने के निर्णय पर तैयार नहीं थ्ी, लेकिन देश के प्रति उसकी भावना के आगे उन्हें भी मजबूर होना पड़ा। हाल ही में सिरोही आने पर भी माता-पिता ने उसे यह नौकरी नहीं करने को कहा था। उनके ही एक हॉस्टल मेट सिरोही पुलिस में तैनात देवाराम चौधरी ने बताया कि हम सब पुलिस, प्रशासन और बैंक आदि की परीक्षाएं देने के इच्छुक थे, लेकिन रमेश ने कभी भी इन नौकरियों को प्राथमिकता नहीं दी।
आंजणा हॉस्टल का वो कमरा नम्बर 20
सिरोही के सारणेश्वर रोड स्थित आंजणा कलबी समाज के न्यू बिल्डिंग का कमरा नम्बर 20 की दीवारें आज भी शहीद रमेशकुमार की यादें बयां कर रही हैं। इस रूम की दीवार और दरवाजे पर भारतीय सेना का प्रमोशनल पोस्टर भी लगा हुआ है। जो इस बात की गवाही देता है कि रमेश चौधरी में देश सेवा के लिए आर्मी का हिस्सा बनने का कितना जुनून था। दो साल तक इस कमरे में उनके रूममेट रहे रायपुर निवासी मुकेशकुमार ने बताया कि आर्मी को लेकर उनकी जुनूनियत का आलम यह था कि शुरू से ही अपने को फिट रखते थे। इसी कारण सिरोही राजकीय महाविद्यालय में एडमिशन लेते ही एनसीसी ज्वाइन की। जुनूनियत इस हद तक थी कि जिम का सामना नहीं होने पर लकड़ी पर पत्थर बांधकर वेट लिफ्टिंग और डंबल जैसे जिम इक्यूपमेंट बनाकर वर्जिश करता था।
ज्योग्राफी के प्रेक्टिकल के लिए उनके साथ जाने वाले सहपाठी बडगांव निवासी देवाराम चौधरी ने बताया कि हम लोग दूसरे कम्पीटीशन की तैयारियां करते थे, लेकिन रमेश चौधरी में आर्मी का जुनून था। रोज अरविंद पेवेलियन में फिजिकल की तैयारी करना, मेडीकल के लिए खुदको स्वस्थ रखना नित्यक्रम में शामिल था। पहली बार मेडीकल में अनफिट होने के कारण सेलेक्ट नहीं हो पाए, दूसरी बार मेडीकल भी क्लीयर किया और बीएसएफ में भर्ती हुए थे।
-सी-सर्टिफिकेट के लिए की तैयारी
गांव में स्कूल शिक्षा पूर्ण करने के बाद रमेशकुमार ने 2010 में सिरोही के राजकीय महाविद्यालय में एडमिशन लिया। यहां पर एनसीसी ज्वाइन की। राजकीय महाविद्यालय के एनसीसी प्रभारी भगवानाराम बिश्नोई ने बताया कि रमेश एक जुनूनी कैडेट था। एनसीसी कैम्प्स में आर्मी के प्रति उसका जुड़ाव और बढ़ा। सी-सर्टिफिकेट लेने के बाद वह बीएसएफ में शामिल हुआ। उसने सी-सर्टिफिकेट में भी ए-ग्रेड पाया था।
-साभार सबगुरु