गरबा नृत्य से प्रसन्न होती है मां दुर्गा

दिनेश जांगिड़ @ अर्थ न्यूज नेटवर्क


मेंगलवा. नवरात्रि आते ही हर तरफ गरबा और डांडिया की धूम शुरू हो जाती है। पारंपरिक अंदाज में सजे हर उम्र के लोग गरबा का जमकर लुत्फ उठाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर गरबा नवरात्रि के समय ही क्यों होता है। आखिर क्या है नवरात्रि और गरबा का स्वीट कनेक्शन।

आपको बता दें कि वैसे तो गरबा गुजरात, राजस्थान और मालवा प्रदेशों में प्रचलित एक लोकनृत्य है लेकिन इसे करने वाले सबसे ज्यादा गुजराती होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह नृत्य मां दुर्गा को काफी पसंद हैं। इसलिए नवरात्रि के दिनों में इस नृत्य के जरिये मां को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है। गरबा का संस्कृत नाम गर्भ-द्वीप है। गरबा के आरंभ में देवी के निकट सछिद्र कच्चे घट को फूलों से सजा कर उसमें दीपक रखा जाता है। इस दीप को ही दीपगर्भ या गर्भ दीप कहा जाता है। यही शब्द अपभ्रंश होते-होते गरबा बन गया। इस गर्भ दीप के ऊपर एक नारियल रखा जाता है। नवरात्र की पहली रात्रि गरबा की स्थापना कर उसमें ज्योति प्रज्वलित की जाती है। इसके बाद महिलाएं इसके चारों ओर ताली बजाते हुए फेरे लगाती हैं। गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा या डांडिया और मंजीरा आदि का इस्तेमाल ताल देने के लिए किया जाता है। गरबा  सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और अश्विन मास की नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है।कस्बे के चामुंडा माता मंदिर में आईजी अनोपनाथ महाराज के सान्निध्य में गरबा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। गरबा महोत्सव को लेकर मंदिर को रंग बिरंगी रोशनी से सजाया गया है। नवरात्रि के पहले दिन देर रात तक गरबों की धूम रही। गरबा महोसव को लेकर युवाओं में जोश और उमंग है।

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