नागौर के दम्पती की गुजरात में सड़क हादसे में मौत

अनामिका राजपुरोहित @ अर्थ न्यूज नेटवर्क


नडियाद. राजस्थान के नागौर जिले के डेह निवासी एक शिक्षा मित्र व उसकी पत्नी की गुजरात के नडियाद में सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। वे नडियाद के पास पलाना में एक डॉक्टर के पास चैकअप के लिए जा रहे थे।

 
जानकारी के अनुसार डेह निवासी शिक्षा मित्र बस्तीराम मेघवाल की पत्नी सुशीला देवी बीते चार से स्पाइनल कोड की बीमारी से पीडि़त थी। बस्तीराम शीतकालीन अवकाश के कारण अपनी पत्नी व चचेरे भाई पुरुषोत्तम के साथ चैकअप के लिए नागौर से तीन जनवरी को बस से पलाना के लिए रवाना हुए। यह लोग चार जनवरी को नडियाद एक्सप्रेस हाईवे पर उतरे। इस दौरान पुरुषोत्तम टैक्सी लेने के लिए गया। बस्तीराम व उसकी पत्नी सड़क किनारे बैठे थे। अचानक तेजी गति से एक ट्रक आया और सामने से आ रही कार को टक्कर मारते हुए असंतुलित होकर बस्तीराम व उसकी पत्नी को कुचल दिया। जिससे बस्तीराम मेघवाल (४०) व उसकी पत्नी सुशीला देवी मेघवाल (३५) की मौके पर ही मौत हो गई। कुछ ही देर में पुरुषोत्तम टैक्सी लेकर पहुंचा तो वहां उसे अपना भाई व भाभी नहीं मिले तो अंधेरे में उन्हें तलाशना शुरू किया। इस दौरान उसे समीप ही क्षतिग्रस्त हाल में ट्रक व कार खड़े दिखाए दिए। उसके पास ही सुशीला देवी का ट्रक से कुचला शव पड़ा नजर आया। लेकिन आसपास बस्तीराम कहीं नजर नहीं आया। कुछ दूरी पर उसे एक शव विहिन क्षत विक्षत शव निखाई दिया।

भाई-भाभी के शव देखे, लेकिन हिम्मत नहीं हारी

पुरुषोत्तम को इतना तो पता चल ही गया था कि उसके भाई व भाभी अब इस दुनिया में नहीं रहे। उसका दिल ठहर सा गया। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। जैसे तैसे कर उसने एलआईसी में अधिकारी के तौर पर कार्यरत अपने जीजा प्रेमचन्द मेघवाल से सम्पर्क साधा। प्रेमचंद ने अहमदाबाद रेलवे में कार्यरत अपने मित्र आर के राजपुरोहित से सम्पर्क किया, जो उप मुख्य टिकट निरीक्षक है। कुछ ही देर में राजपुरोहित अपने मित्रों के साथ दुर्घटना स्थल पर पहुँचे। उन्होंने प्रशासन को सूचित किया। इस दौरान नडियाद पुलिस ने सिविल अस्पताल में शवों का पोस्टमार्टम करवाया। बस्तीराम की हालत इतनी खराब थी कि पोस्टमार्टम भी नहीं हो पाया। कानूनी कार्यवाही के बाद दोनों शवों को पुरुषोत्तम को सौंप दिया गया। जहां से शव राजस्थान के लिए रवाना किए गए।

छीन गई बुढ़े बाप की लाठी

बस्तीराम अपने बुढ़े बाप की लाठी थी, लेकिन समय के चक्र ने उनके बुढ़ापे की लाठी को छीन लिया। बस्तीराम की अठारह वर्ष की बेटी है। जबकि दो बेटे हैं, जिनकी उम्र सोलह व चौदह वर्ष है। इन तीनों के सिर से भी पिता का साया उठ गया। बस्तीराम खुद अपने गुजारे को मोहताज है, अब उन्हें अपने तीन पोते-पोतियों के लालन-पालन की चिंता सता रही है।

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