जवाई तुम वरदान बन जाओ…
पश्चिमी राजस्थान के सबसे बड़े बांध जवाई में दस साल बाद पानी की भरपूर आवक हुई। कहने को जवाई नदी जालोर जिले की जीवन रेखा है, लेकिन यह बात अब सिर्फ दिल को दिलासा देने तक ही ठीक है। महज चौदह दिन तक नदी में पानी छोड़ने के बाद इसे करीब-करीब बंद सा कर दिया। बहरहाल, नदी में 485 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। इस पानी से सुमेरपुर तक नदी तीन इंच बह रही है। आहोर व जालोर तक आते यह पानी नाम मात्र का रह जाता है। जालोर के बागोड़ा क्षेत्र की धरती तो अब तक अपनी प्यास ही नहीं बुझा पाई है। तो क्या जालोर वासियों के लिए जवाई का पानी त्रासदी का दंश झेलने को रह गया है। जालोर की जनता को वैसे भी जवाई बांध का पानी अब तक छह-सात बार ही मिल पाया है, वो भी तब जब अतिवृष्टि से पानी की अच्छी आवक के कारण गेट खोले गए। वर्ष 2006 में तो पानी उस समय छोड़ा गया, जब बेड़ा बांध टूटने के कारण अचानक जवाई बांध में पानी की आवक बढ़ गई। यह पानी भी एक साथ छोड़ा गया। जिसने बहाव क्षेत्र के समीप स्थित कृषि बेरों को नुकसान भी पहुंचाया। भैंसवाड़ा गांव के किसान तो रतिजोगा कर अपने कृषि बेरों में पानी की आवक रोकने के लिए रखवाली करते रहे। साफ जाहिर है कि जवाई नदी उस स्थिति में ही वरदान है जब इसमें लगातार पानी का बहाव हो। वो भी एक-दो माह के लिए। शनिवार सुबह तक जवाई बांध में इस बार का सबसे ज्यादा पानी यानी 7156 एमसीएफटी पानी उपलब्ध था। लेकिन इस जल उपलब्धता के बावजूद नदी में छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा घटा दी। सूत्रों की मानें तो पाली के जलदाय विभाग ने बांध में जल उपलब्धता को देखते हुए दो साल का पानी आरक्षित करने की रणनीति बना ली है। वो भी 4500 एमसीएफटी पानी आरक्षित करने की कवायद है। जबकि शेष पानी सिंचाई व औद्योगिक उपयोग के लिए देने की योजना है। यह सही है कि पहली प्राथमिकता पीने का पानी है, लेकिन इससे कैसे इनकार किया जा सकता है कि जालोर जिले के सभी ब्लॉक डार्कजोन में शुमार है और यहां के लोगों को पीने के लिए मिलने वाले पानी में फ्लोराइड रूपी जहर घुला रहता है। कभी खेती बाड़ी के लिए संपन्न मानें जाने वाले इस इलाके में अब खेत- खलिहान उजड़ने लगे हैं। हाल यह है कि यहां का भूजल रसातल में समाने लगा है। यहां का भूजल सिर्फ जवाई नदी में नियमित बहाव से रिचार्ज हो सकता है। हालांकि बांध का नहरी पानी आहोर उपखंड के गांवों में भी दिया जाता है, लेकिन दूसरा पहलू यह भी है कि यहां के 22 गांवों के किसान चाही भूमि के लम्बित विवाद के चलते अपने खेतों में नहरी पानी को तरस रहे हैं। कारण चाहे जो भी हो, लेकिन यह सच है जालोर जिले को पानी हमेशा खैरात की तरह ही मिला है। जबकि जवाई नदी जालोर जिले के 80 फीसदी हिस्से को प्रभावित करती है। यह बात इसी से जाहिर हो जाती है कि जिले के 65 हजार नलकूप में से 23 हजार नलकूप बंद पड़े हैं। और सच यह है कि इनको जीवनदान सिर्फ जवाई नदी ही दे सकती है। वर्ष 1938 से पहले तक जवाई नदी नियमित रूप से बहती थी। इसके बाद वर्ष 1946 में बांध का निर्माण शुरू हुआ और वर्ष 1957 में बांध निर्माण पूर्ण हुआ। लेकिन इसके साथ ही जालोर जिले के लिए यह बांध अभिशाप बनता गया। बांध बनने के बाद औसतन एक दशक के अंतराल से जवाई नदी में पानी छोड़ा गया है। इन हालातों में भूजल स्तर गिरता गया। दशकों से जालोर की जनता पानी को तरस रही है। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कमजोर राजनीतिक प्रतिनिधित्व रहा है। इस बार जवाई में पानी छोड़ने की वकालात करने सिर्फ आहोर विधायक पहुंचे। जबकि हकीकत यह है पानी को स्टोरेज रखकर पाली में देने के लिए पाली के सभी जनप्रतिनिधि एकजुट थे। सही बात तो यह है कि जालोर जिले का राजनीतिक नेतृत्व ही दृष्टिहीन है। मामला जिले के लाखों किसानों और समग्र खुशहाली से जुड़ा है, लेकिन विपक्ष तो दूर सत्ता पक्ष के सांसद और विधायक भी एकजुट नहीं दिखे। कांग्रेस हो या भाजपा या फिर अन्य सामाजिक संगठन, सभी जवाई के मुद्दे पर दूर भागते नजर आए। भाजपा, कांग्रेस, किसान संघ या अन्य संगठन आज तक एक साथ बैठकर जवाई की रणनीति ही नहीं बना पाए हैं। वर्ष 1967 में जालोर में कॉलेज खुलवाने के लिए जालोरवासी एकजुट थे और एक सप्ताह तक बाजार बंद रखे गए थे। सवाल यह भी उठता है कि जब कभी बांध में 20 फीट पानी रहा है, तब भी पाली में पेयजल के लिए इंतजाम हो गया। अब साठ फीट से ज्यादा पानी है तब भी पूरे पानी पर कुण्डली मारना कहां तक उचित है। जालोर जिले के पानी के हिस्से के लिए कोई सीमा तो निर्धारित होनी चाहिए। कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर न्यायालय को आदेश जारी करना पड़ा। लेकिन यहां मामला सिर्फ दो जिलों में पानी के बंटवारे का है और राज्य सरकार को इसके लिए कोई पहल तो करनी ही पड़ेगी। तभी जवाई वरदान बन पाएगी।
– अल्लाह बख्श खान, मो. 09462289088
‘सराहनीय रिपोर्टिंग’ शाबाश अल्लाहबक्सजी
Reply100% सत्य बात कही आपने, अभी जालौर की जीवन रेखा जवाई नदी ही बन सकती है वह भी नियमित बहाव से..
Replyशाबाश
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