दिल्ली की हवा इतनी खराब हो चुकी थी कि लोगों ने इंडिया गेट के सामने जुटकर आवाज उठाई — लेकिन जब नारे बदल गए, तो शांत प्रदर्शन एक भीड़भाड़ में बदल गया। रविवार, 23 नवंबर 2025 को शाम 4 बजे, दिल्ली क्लीन एयर कोऑर्डिनेशन कमेटी द्वारा आयोजित वायु प्रदूषण विरोध प्रदर्शन के दौरान, कुछ प्रदर्शनकारियों ने मादवी हिद्मा के नाम के नारे लगाए, जिसने पुलिस को बेचैन कर दिया। उन्होंने न केवल मादवी हिद्मा के पोस्टर उठाए, बल्कि ऐसे प्लैकार्ड भी लिए जिन पर लिखा था: ‘बिरसा मुंडा से लेकर मादवी हिद्मा तक, हमारे जंगलों और पर्यावरण की लड़ाई जारी रहेगी।’ ये नारे, जो एक सामाजिक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, अचानक राज्य के खिलाफ षड्यंत्र के आरोपों में बदल गए।
प्रदर्शन से लेकर हिंसा तक: क्या हुआ?
प्रदर्शन की शुरुआत शांतिपूर्ण थी। सौ से अधिक लोग, जिनमें छात्र, पर्यावरण कार्यकर्ता और सामाजिक सक्रियतावादी शामिल थे, इंडिया गेट के कार्तव्य पथ के क्षेत्र में जमा हुए। उनका मुख्य आरोप था कि सरकार सिर्फ ‘कॉस्मेटिक उपाय’ कर रही है — जैसे बारिश करवाना या स्कूल बंद करना — जबकि वास्तविक समस्याएं जैसे औद्योगिक उत्सर्जन, धूल और बार-बार होने वाले फसल जलाने के तरीके नजरअंदाज किए जा रहे हैं। पर जब प्रदर्शनकारी रास्ता रोकने लगे, तो पुलिस ने उन्हें चार बार चेतावनी दी। फिर भी वे आगे बढ़े।
और फिर — वो घटना।
कुछ प्रदर्शनकारियों ने लोगों को भगाने के लिए पेपर स्प्रे का इस्तेमाल कर दिया। ये असामान्य था। दिल्ली पुलिस के अनुसार, इस तरह की हिंसा पिछले तीन सालों में कभी नहीं देखी गई। तीन पुलिस अधिकारी घायल हुए, जिन्हें आरएमएल अस्पताल में भर्ती कराया गया। एक अधिकारी ने बताया: ‘हमने उन्हें चार बार रोका, फिर भी वे आगे बढ़े। हमारी टीम को बर्बरता का शिकार बनाया गया।’
दो एफआईआर, 22 गिरफ्तार
घटना के तुरंत बाद, दिल्ली पुलिस ने दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज कीं। पहली, कार्तव्य पथ पुलिस स्टेशन में, छह प्रदर्शनकारियों — अकाश, अहान, अक्षय, समीर और विष्णु — के खिलाफ, भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराओं 74, 79, 115(2), 132, 221, 223 और 61(2) के तहत। दूसरी एफआईआर, संसद मार्ग पुलिस स्टेशन में, 17 अन्य आरोपियों के खिलाफ धाराओं 223A, 132, 221, 121A (राज्य के खिलाफ षड्यंत्र), 126(2) और 3(5) के तहत।
धारा 121A का इस्तेमाल खास तौर पर चिंता का विषय है। यह धारा उन लोगों के खिलाफ लागू होती है जो राज्य को गिराने की साजिश करते हैं — जिसे अक्सर नक्सलवादी गतिविधियों से जोड़ा जाता है। और यही वजह है कि दिल्ली पुलिस के अधिकारी अब कह रहे हैं: ‘ये प्रदर्शन सिर्फ वायु प्रदूषण के लिए नहीं था। ये एक राजनीतिक अभियान था।’
न्यायालय में चल रहा बहस
सोमवार, 24 नवंबर 2025 को, पटियाला हाउस न्यायालय में न्यायमूर्ति अरिदमन सिंह चीमा और सहिल मोंगा ने 22 में से 17 आरोपियों (जिनमें 11 महिलाएं शामिल हैं) को तीन दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। बाकी पांच को दो दिन की हिरासत मिली। एक आरोपी को उम्र की पुष्टि के लिए सुरक्षित घर में भेजा गया। पुलिस ने 14 दिन की हिरासत की मांग की थी, लेकिन न्यायालय ने इसे अभी तक स्वीकार नहीं किया।
पुलिस ने न्यायालय को बताया कि सभी महिला आरोपियों को तिहाड़ जेल नंबर 6 में रखा जाएगा, जबकि पुरुषों को अन्य सेक्शन में। लेकिन यहां एक और बात सामने आई — प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि उनके साथ गिरफ्तारी के दौरान ‘कस्टोडियल टॉर्चर’ और ‘अश्लील छूछू’ की गई। पुलिस ने इन आरोपों को खारिज कर दिया: ‘हमने केवल तभी कार्रवाई की जब हम पर हमला किया गया।’
क्या मादवी हिद्मा का नाम अब ‘पर्यावरण’ का हिस्सा बन गया?
मादवी हिद्मा एक ऐसे नेता थे जिन्हें नक्सलवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए 2015 में मार दिया गया था। वे छत्तीसगढ़ के जंगलों में बसे आदिवासी समुदायों के लिए लड़े। उनका नाम अक्सर जंगलों की रक्षा और भूमि अधिकार के साथ जोड़ा जाता है। लेकिन अब ये नाम एक वायु प्रदूषण प्रदर्शन में क्यों आया? क्या ये सिर्फ एक गलती थी? या ये एक जानबूझकर रणनीति?
कुछ पर्यावरणविद इसे ‘नक्सलवादी आयडेंटिटी का अपहरण’ कह रहे हैं। ‘जब आम जनता के लिए वायु प्रदूषण एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिसके खिलाफ कोई नहीं लड़ रहा, तो कुछ समूह इसे अपने राजनीतिक लक्ष्यों के लिए इस्तेमाल करने लगे,’ एक विश्लेषक ने कहा।
अगले कदम: CCTV, जांच और न्याय
दिल्ली पुलिस ने अभी तक 150 घंटे का CCTV फुटेज देख लिया है। उनका लक्ष्य है — उन सभी की पहचान करना जिन्होंने ‘मादवी हिद्मा अमर रहे’ का नारा लगाया। एक अधिकारी ने कहा: ‘हमें ये जानना है कि कौन लाया था ये पोस्टर? कौन नारे लगा रहा था? क्या ये सिर्फ छात्र थे, या कोई बाहरी संगठन इसमें शामिल है?’
अगर जांच में यह साबित हो जाए कि किसी बाहरी नक्सलवादी संगठन ने इस प्रदर्शन को तैयार किया है, तो ये एक बड़ा मामला बन सकता है। ऐसे में दिल्ली पुलिस के पास न केवल एफआईआर के तहत कार्रवाई करने का अधिकार है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत भी गिरफ्तारी का विकल्प है।
क्या ये एक नया रुझान है?
2022 में असम में एक पर्यावरण प्रदर्शन में भी एक नक्सलवादी नेता के नारे लगे थे। उस बार भी पुलिस ने गिरफ्तारियां कीं। लेकिन इस बार, दिल्ली का राजधानी होना, इंडिया गेट का स्थान और न्यायालय में धारा 121A का इस्तेमाल — ये सब कुछ इस घटना को अलग बनाता है।
क्या वायु प्रदूषण का मुद्दा अब राजनीति का एक हथियार बन गया है? या फिर, जब आम आदमी की आवाज नहीं सुनी जाती, तो अलग-अलग आंदोलन एक-दूसरे को अपना बना लेते हैं? ये सवाल अभी भी जवाब का इंतजार कर रहे हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
मादवी हिद्मा कौन थे और उनका नाम वायु प्रदूषण प्रदर्शन में क्यों आया?
मादवी हिद्मा छत्तीसगढ़ के आदिवासी आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे, जिन्हें 2015 में सुरक्षा बलों द्वारा मार दिया गया था। वे जंगलों और भूमि अधिकार के लिए लड़ते थे। इस प्रदर्शन में उनका नाम आया क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने पर्यावरण संरक्षण को आदिवासी लड़ाई से जोड़ने की कोशिश की। लेकिन ये जुड़ाव पुलिस के लिए नक्सलवादी प्रभाव का संकेत लगा।
क्या प्रदर्शन के लिए अनुमति थी?
नहीं, दिल्ली पुलिस ने न्यायालय को बताया कि यह प्रदर्शन बिना अनुमति के आयोजित किया गया था। इंडिया गेट क्षेत्र में किसी भी जुलूस या भीड़ के लिए पूर्व अनुमति अनिवार्य है। प्रदर्शनकारियों ने बाड़ें तोड़कर रास्ता रोक दिया, जिससे यह अवैध और आपातकालीन स्थिति बन गई।
पुलिस ने किन धाराओं के तहत गिरफ्तारियां कीं और क्यों?
पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 121A (राज्य के खिलाफ षड्यंत्र), 223A (सार्वजनिक अधिकारी के आदेश का उल्लंघन) और 132 (सैन्य अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह) का इस्तेमाल किया। ये धाराएं तब लागू होती हैं जब किसी प्रदर्शन को राजनीतिक विद्रोह के रूप में देखा जाए। पेपर स्प्रे का इस्तेमाल और नारों का चित्रण इन धाराओं के तहत गंभीर आरोप बनाने का आधार बना।
क्या यह घटना भारत में पर्यावरण आंदोलनों को प्रभावित करेगी?
हां। इस घटना ने अन्य पर्यावरण कार्यकर्ताओं को डरा दिया है। अब कई समूह अपने प्रदर्शनों को बंद कर रहे हैं, डरते हुए कि उनका नाम भी नक्सलवादी या विद्रोही लेबल से जोड़ दिया जाएगा। ये एक चेतावनी है कि पर्यावरण के मुद्दे अब राष्ट्रीय सुरक्षा के रूप में देखे जा रहे हैं।
क्या महिला प्रदर्शनकारियों के साथ अश्लील व्यवहार किया गया?
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया है कि गिरफ्तारी के दौरान उनके साथ अश्लील व्यवहार किया गया। लेकिन दिल्ली पुलिस ने इसे खारिज कर दिया है और कहा है कि उन्हें सुरक्षित ढंग से ले जाया गया। अभी तक कोई फोटो या वीडियो सामने नहीं आया है, और एक न्यायिक जांच की मांग की जा रही है।
अगला कदम क्या होगा?
अगले 72 घंटों में, पुलिस न्यायालय को अपनी जांच की रिपोर्ट पेश करेगी। अगर उन्हें लगता है कि कोई बाहरी संगठन इसमें शामिल है, तो वे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत भी गिरफ्तारियां कर सकते हैं। न्यायालय भी अगले दिनों में इस मामले को राज्य के खिलाफ षड्यंत्र के रूप में विस्तार से सुनेगा।
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