समाचार और मीडिया समीक्षा — भारतीय चैनलों को कैसे पढ़ें

खबर देखते समय आपको अक्सर ऐसा लगेगा कि चैनल हर चीज को ड्रामा बना देता है। क्या ये केवल ज्यादा व्यू पाने की चाल है या सच में खबरें गुमराह करती हैं? इस पेज पर हम सरल तरीके बताएंगे जिससे आप किसी भी रिपोर्ट की सच्चाई जल्दी समझ सकें।

सबसे पहले, हर खबर का स्रोत पूछिए। क्या रिपोर्ट में असली दस्तावेज, तस्वीरें, या सीधे सम्बंधित लोगों के बयान हैं? अगर सिर्फ ‘‘एक सूत्र ने बताया’’ जैसा वाक्य बार-बार आता है तो सतर्क हो जाइए।

दूसरा, हेडलाइन और कंटेंट अलग जाँचिए। बहुत बार हेडलाइन शॉर्ट और सनसनीखेज होती है पर अंदर जो लिखा होता है वह मामूली होता है। हेडलाइन-फॉल्सीफिकेशन से बचने के लिए पूरा लेख या क्लिप ध्यान से देखें, सिर्फ टीजर मत देखें।

कैसे पहचानें पक्षपात और सनसनी

अगर चैनल बार-बार एक ही तरह की बातें दोहराता है—किसी पार्टी या विचारधारा का पक्ष लेते हुए—तो वह बायस है। क्या रिपोर्ट में विरोधी पक्ष को बराबर जगह मिली है? क्या रिपोर्टर सवाल पूछ रहा है या केवल नरेशन कर रहा है? उदाहरण के तौर पर, किसी विरोध कार्यक्रम की कवरेज में सिर्फ हिंसा दिखाकर पूरा मुद्दा मिटा देना पक्षपात दिखाता है।

TRP और क्लिक्स की भूख भी खबरों को तिरछा कर देती है। लाइव टकराव, चिल्लाती आवाजें और बार-बार ‘‘ब्रेकिंग’’ टैग से खबर की गुणवत्ता घटती है। असली खबरें शांत और संतुलित तरीके से भी पढ़ी जा सकती हैं।

त्वरित जाँच के व्यावहारिक तरीके

जब कोई शक हो, तो ये तीन आसान स्टेप अपनाइए: 1) किसी दूसरी भरोसेमंद साइट पर वही खबर देखें; 2) ट्वीट/क्लिप का पूरा संदर्भ खोजिए, कट-एडिटेड क्लिप बनाम पूरा वीडियो अलग बात होती है; 3) स्रोत के मालिकाना हक और विज्ञापन पार्टनर चेक करिए—मालिक कौन है, क्या उसका कोई राजनीतिक झुकाव है?

रिपोर्टर के नाम, टाइमस्टैम्प और असल फुटेज की मांग करने से भी फर्क पड़ता है। सोशल मीडिया पर फैल रही खबर को तुरंत सच मानना बंद कर दें। ज्यादातर गलत खबरें बिना संदर्भ के तेजी से फैलती हैं।

आप एक सामान्य दर्शक के रूप में क्या कर सकते हैं? चैनल बदलकर एक ही खबर कई स्रोतों से देखिए, तुरंत शेयर करने से पहले 5 मिनट रुकिए, और निजी राय बनाते समय तथ्य को प्राथमिकता दीजिए।

यह पेज नियमित रूप से ऐसी मीडिया समीक्षा पोस्ट दिखाएगा—जहां हम उदाहरण के साथ बताएंगे कि कौन सी कवरेज भरोसेमंद है और कौन सी सनसनी पसंदीदा चाल। अगर आप चाहें तो किसी रिपोर्ट का नाम भेजिए, हम उसे साधारण भाषा में जाँचकर बताएंगे।

31जुल॰

भारतीय समाचार चैनल पूरी तरह से बेकार क्यों हैं?

के द्वारा प्रकाशित किया गया मयंक वर्मा इंच समाचार और मीडिया समीक्षा
भारतीय समाचार चैनल पूरी तरह से बेकार क्यों हैं?

अरे यार, भारतीय समाचार चैनलों को देखकर तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ये चैनल तो बदले हुए मौसम की तरह होते हैं, अगला क्या होगा कोई नहीं बता सकता। कभी तो लगता है ये चैनल खुद को 'ब्रेकिंग न्यूज़' की दुकान समझते हैं, हर पल नई खबर देने की होड़ लगी रहती है। वो भी बिना तथ्यों की जांच किए। और ये चैनल तो खेल के मैदान को भी अक्सर रणभूमि समझ बैठते हैं, क्रिकेट से लेकर बैडमिंटन तक सब कुछ होता है 'जीवन संग्राम'। हाँ भाई, ये सब देखकर तो लगता है की हमारे भारतीय समाचार चैनल काफी बेकार चल रहे हैं।

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