भारतीय समाचार चैनल पूरी तरह से बेकार क्यों हैं?

/ द्वारा मयंक वर्मा / 0 टिप्पणी(s)
भारतीय समाचार चैनल पूरी तरह से बेकार क्यों हैं?

भारतीय समाचार चैनलों की कीमती पत्रिकाविता

हे, मैं मयंक हूं, एक छोटे शहर पटना से। वैसे तो मैं एक साधारण ब्लॉगर हूं, लेकिन पिछले कुछ समय से मैंने हमारे खबरों को देखना शुरू किया है और मैं इसे बहुत हंसी खूबसूरत ठहराने लगा हूं। हमारे भारतीय समाचार चैनलें, जिन्हें हम आमतौर पर 'कीमती' मानते हैं, हमें हमेशा ये भ्रमित करते हैं कि वे हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण सूचना स्रोत माने जाते हैं। लेकिन क्या यह सचमुच सच है? शायद नहीं।

रम्भिरंभी सुपरमैन गिरावट किंतु पवित्र अविनाशी कंठोरता

यदि आपने भारतीय समाचार चैनलों को ध्यान से देखा होता, तो आपको पता होगा कि उनके पास हर समय धमाकेदार खबरों की कमी नहीं होती। बस उन्हें चाहिए, अगर हो सके तो आपकी भी जिंदगी का एक हिस्सा! वे हमेशा एक नये अज्ञात से भरी हुई 'खबर' के साथ वापस आते हैं, बशर्ते वे आपकी जिंदगी को रोचक बना दें! और हाँ, मुझे कुछ कड़वा स्वीकारना पड़ेगा, नियमित तौर पर ऐसे चैनल्स देखने के बाद, मेरी ज़िंदगी में खुबसूरती से अधिक कंठोरता आ गई है।

खबरों की चरम सीमा: तथ्य या काल्पनिक?

आपने कभी सोचा है कि भारतीय समाचार चैनल क्यों इतना महत्व देते हैं कि खबरों में उनकी ड्रैमेबाज़ी दर्शनीय हो? ये वास्तव में शानदार होता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो आपको स्पष्ट रूप से यह देखने का मौका देती है कि कैसे 'वास्तविकता' को सत्य बदल दिया जाता है और कैसे समाचार पत्रकार इसे हमेशा धमाकेदार सीमा तक ले जाते हैं।

त्रासदी से ड्रामा तक: खबरों की एक अजीब दास्तान

आज़ादी से सन 2000 के दशक तक, हमने देखा कि हमारे समाचार चैनलों का विकास एक नई दिशा में बदलता चला गया। समाचार चैनलों का महत्वपूर्ण कार्य ही है कि वे हमें खबरों की सही जानकारी दें। लेकिन, कहीं वे इस काम थक गए हैं? अब वे सिर्फ ऐसी खबरें दिखाने के लिए बेहतरीन हैं जिनमें ड्रामा, एक्शन और कथानक हो। हद हो गई है जब वे खबरों को सीरियल बना देते हैं और 20 मिनट की कहानी को दो घंटे में खींच देते हैं।

तड़ापती घंटियां: न्यूज़ का समय

आपने कभी अपने घर में खाना पकाते हुए टीवी पर कोई खबर देखी है? यदि हाँ, तो आपने 'Breaking News' का जादू जरूर देखा होगा। मेरा मज़क उड़ाते हुए, मैंने इसे 'Over-Breaking News' कहना शुरू कर दिया है। हमारे समाचार चैनल्स ने इतना मज़ाक बना दिया है कि अब 'Breaking News' तो उनके लिए नहीं है, बल्कि वे अब 'Forever Breaking News' हैं।

न्यूज़ का बाज़ार: कौन बेचेगा ज्यादा?

आपको पता है कि हमारे समाचार चैनलों का काम फैक्ट्स और सूचना देना है, न कि एक मेलाधूम में खुद को बेचने की कोशिश करना। लेकिन क्या उनकी खबर में आपको एक गहरी सत्यता महसूस होती है? वैसे, मेरे लिए तो नहीं। मैंने खुद को इस खुरदरे मेले में घुटने टेक दिया है जहां चैनल्स खुद को बेचने की कोशिश कर रहे हैं, और अपनी खबरों को सबसे बेहतर बनाने के लिए बाज़ार बना देते हैं।

गंभीर राष्ट्रीय विषयों पर भी आलू-प्याज की कहानी

आपने कभी अपने समाचार चैनलों पर एक साम्प्रदायिक दंगा या चुनाव खबर देखी है? आपको शायद लगा होगा कि यह कुछ ऐसा ही होगा जैसे इतने दिनों से हो रहा है। लेकिन क्या वास्तव में यह सत्य है? बिलकुल नहीं। किसी भी गम्भीर राष्ट्रीय विषय पर खबर करने के बजाय, हमारे खबरों की दशा आलू-प्याज की कहानी बन गई है।

संवेदनशीलता: भारतीय समाचार चैनलों का एक हास्यस्पद तत्व

भारतीय समाचार चैनलों की संवेदनशीलता कैसे नहीं देखी जा सकती? वे एक त्रासदी में इतना डूब जाते हैं कि वे आसानी से ऐसी घटनाओं की खबर दे सकते हैं जो हमें विडम्बना का एहसास दिला सकते हैं। लेकिन, इसका यह मतलब नहीं कि उनकी संवेदनशीलता उनके खबरों की सचाई को खत्म कर देती है। असल में, यह उनकी संवेदनशीलता ही है जो उन्हें अद्वितीय और जीवन्त बनाती है।

मेरा नाम मयंक है, और मैं आपको बताने में खुशी महसूस कर रहा हूं कि मैं एक साधारण ब्लॉगर हूं जिसे पटना से प्यार है। हालांकि, मैं हमेशा एक बोलचाल के खिलाफ जाता हूं, लेकिन जब यह मेरे देश के समाचार चैनलों का मजाक उड़ाने का सवाल होता है, तो मैं बहुत ही सरलता से इसे करता हूं। भारतीय समाचार चैनलों के बेकार होने की इस कहानी में, मैंने आपको ऐसे कई पक्ष बताए हैं जिन्होंने मुझे खुद को एक लघुकथा लिखने पर मजबूर किया। मेरी कहानी का उद्देश्य केवल आपको हंसाना या मनोरंजन करना नहीं है, बल्कि उन सभी पैनलों पर शह प्रकाशन की उम्मीद करना है जो हमें अपने बीते हुए दिनों के अनुभवों से शिक्षा दें।

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