मारवाड़ के लाल का अदम्य शौर्य, तुर्की सेना को घुटने टेकने पर कर दिया था मजबूर, जानिए आप भी…
जालोर. मारवाड़ के एक लाल ने प्रथम विश्वयुद्ध में अपने शौर्य का ऐसा लोहा मनवाया था कि वे आज भी भारतीयों के साथ विदेशियों के लिए भी प्रेरणास्रोत है। हाइफा के युद्ध में अपने अदम्य शौर्य और साहस के बूते उन्होंने ना केवल तुर्की सेना के दांत खट्टे कर दिए, बल्कि पूरे युद्ध का रुख ही बदल कर रख दिया था। डिंगल भाषा के साहित्यों में आज भी उनकी वीर गाथाएं मौजूद हैं। वहीं भारतीय सेना उनकी शहादत की स्मृति में हर वर्ष हाइफा हीरो दिवस मनाती है। हाइफा हीरो मेजर दलपतसिंह शेखावत के ९८वें बलिदान दिवस पर अर्थन्यूज.इन का विशेष आलेख :
जीवन परिचय
मेजर दलपसिंह शेखावत का जन्म देवली हाऊस वर्तमान में एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज जोधपुर में विश्व प्रसिद्ध पोलो खिलाड़ी कर्नल हरिसिंह शेखावत के घर २६ जनवरी १८९२ को हुआ। शिक्षा इस्टर्बन कॉलेज इंग्लैंड महाराज सर प्रताप के कुंवर नरपतसिंह के साथ हुई।
हाइफा युद्ध में भारतीय सेना की कमान
प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की सेना ने हाइफा पर कब्जा कर लिया। ये वहां युद्धियों पर अत्याचार कर रही थी और तुर्की सेना का मोर्चा बहुत मजबूत था। तब उस पर विजय हासिल करने के लिए भारतीय सेना का दायित्व सेनापति मेजर रावणा दलपतसिंह शेखावत को दिया गया। जिन्होंने सच्चे सेनापति की तरह बहादुरी का असाधारण परिचय दिया। मेजर दलपतसिंह जोधपुर के रसाला हरोल में आगे थे और पीछे (चंदोल में) अंग्रेज सेना थी।
अदम्य शौर्य के बूते फहराया परचम
प्रात: काल होते ही मेजर दलपतसिंह को तुर्की फौज (शत्रु दल) दृष्टिगोचर हुआ। बिना न्यान की किरचें (तलवार) लिए रसाले के जवान आगे बढ़ रहे थे। इधर तो घोड़ों की बागे उठी और तुर्की सैनिकों ने मशीनगनों से कारतूस बरसाने शुरू कर दिए। बारह व चौदह इंची तोपे गोले उगलने लगी। घोड़ों के पौड़ और तोपों की गर्जन से युद्ध का विकराल रूप दिखाई देने लगा। मेजर दलपतसिंह घोड़े पर सवार हो जोधपुर रसाल का नेतृत्व कर रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में मेजर ने अदम्य साहस, हिम्मत व हौसले का परिचय दिया। उन्होंने जोधपुरी घुडसवारों के साथ दुश्मनों पर तोपों से तीव्रगामी हमला बोल दिया। देखते ही देखते दुश्मनों की तोप का मुंह दुश्मन की ओर मोड़ दिया। कई तुर्क सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। शत्रु की सेना में भगदड़ मचा दी। शेखावत ने इस युद्ध का रुख ही बदल दिया। इसी दोरान तुर्की सेना के मशीनगनों से निकले चार कारतूस मेजर दलपतसिंह के सीने में आकर लगे। इसके बावजूद शेखावत तनिक भी नहीं घबराए और अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाते हुए आगे बढऩे के लिए प्रेरित करते रहे। उनका हमला पूरी शक्ति और शूरता से जारी था। इस हमले में उन्होंने सैकड़ों तुर्की सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और ७०० तुर्क सैनिकों को उनके सेना नायक सहित जीवित कैद कर लिया। वह एक वीर सैनिक की तरह लड़ता हुआ आगे बढ़ा और हेफा के दुर्ग पर २३ सितम्बर १९१८ को जोधपुर रसाला का परचम फहरा दिया। उस वीर को ग्यारह कारतूस लग चुके थे। हमले में वे बुरी तरह घायल हुए और इसी दिन यह वीर योद्धा वीरगति को प्राप्त कर अमर शहीद हो गया। महाराजा सर प्रतापसिंह ने जब मेजर दलपतसिंह के वीरगति की खबर सुनी तो उन्हें बहुत दु:ख हुआ। उनके मुंह से यकायक ये शब्द निकले ‘दलपतसिंह ने जोधपुर का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करवा दिया है। उसने अपना वादा पूरा किया।Ó
डिंगल भाषा में मौजूद हैं शौर्य गाथाएं
मेजर दलपतसिंह के शौर्य, स्वामी भक्ति एवं सच्चरित्रता से प्रभावित होकर मारवाड़ा के तत्कालीन अनेक कवियों ने डिंगल भाषा में इस वीर योद्धा के प्रति अपनी काव्यांजलि अर्पित् की।
स्मृति में बनाया मेमोरियल भवन
दलपतसिंह शेखावत की शहादत की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए उन्हीं दिनों जोधपुर में बड़ा उत्सव हुआ। जिसमें उनकी वीरता को सराहते हुए उनकी याद में २३ सितम्बर १९१९ को दलपत मेमोरियल भवन का निर्माण कराया गया। उसमें उनके चित्र का अनावरण किया गया। जो सर प्रताप स्कूल में विद्यमान है।
थल सेना मनाती है हाइफा हीरो दिवस
भारतीय थल सेना की ओर से हर साल २३ सितम्बर को हाइफा हीरो दिवस मनाकर मेजर दलपतसिंह शेखावत के प्रति सम्मान प्रकट करती है। उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। युद्ध स्थल पर मरणोपरांत मिल्ट्री क्रॉस सैनिक अलंकरण से सम्मानित होने वाले शेखावत विश्व में सबसे कम उम्र के सैनिक है। हाइफा विजय के उपलक्ष्य में शेखावत को हीरो ऑफ हाइफा के अलंकरण से विभूषित किया गया। साथ ही शेखावत का स्टेच्यू इंग्लैंड की रॉयल गैलेरी में प्रतिष्ठित की गई। इस सम्मान से सम्मानित होने वाले वे प्रथम भारतीय है।
दिल्ली में प्रतिमा, इजरायल में पाठ्यक्रम
राजपूताना रेजिमेंट के सम्मान में दिल्ली के लाल किले में भारत के वायसराय ने अमर शहीद मेजर दलपतसिंह के चित्र का अनावरण किया था। इस सम्मान से सम्मानित होने वाले वे मारवाड़ के प्रथम सैनिक है। तत्कालीन महाराज उम्मेदसिंह ने मेजर दलपतसिंह की स्मृति में चांदी की प्रतिमा बनवाकर जोधपुर लॉन्सर्स को भेंट की, यह प्रतिमा ६१वीं केवेलरी जयपुर का गौरव बढ़ा रही है। इजराइल सरकार इस दिन को हाइफा हीरो दिवस के रूप में मनाती है। इनकी जीवनी को अपने स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। इसी तरह दिल्ली के त्रिमूर्ति भवन के सामने तीन घुड़सवार सैनिकों में से एक मूर्ति मेजर दलपतसिंह शेखावत की है। भारतीय सेना इस दिवस को बड़े सम्मान से मनाती है।
रिपोर्ट : अल्लाह बख्श खान, मो. 9462289088