साम-दाम-दण्ड-भेद का एक रूप मोसाद, भारत की खूफिया एजेंसी रॉ से है खास रिश्ते
पाकिस्तान की आईएसआई, अमेरिका की एफबीआई और भारत की रॉ जैसी खुफिया एजेंसी की तर्ज पर इजराइल की मासोद भी एक ऐसी खूफिया एजेंसी है जिससे अमेरिका जैसे देश भी बच कर रहते है। चारों और इस्लामिक देशों से घिरे इजराइल की यह एजेंसी अपने देश का वजूद बचाने और पूरी दुनिया में इजराइल का डंका बजाने में सबसे बड़ा कारगर हथियार है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस देश की जनसंख्या भी लगभग 80 लाख के करीब है। फिर भी इस देश का पूरी दुनिया में डंका बजता है। इसका सबसे बड़ा कारण इसकी खूफिया एजेंसी मासोद है। इस एजेंसी की ओर से किए गए ऑपरेशन की दुनिया में टॉप पर है। इस लिस्ट में अमेरिका भी इससे पीछे है। भारत में खूफिया जानकारियों में रॉ का सबसे बड़ा सहयोगी मासोद ही है। इसलिए भारत पर बार-बार आरोप लगा दिए जाते है कि रॉ, मासोद की कठपुतली है। हालांकि जो भी हो भारत की ओर से किए गए आज दिन तक बड़े-बड़े ऑपरेशन में इसका सबसे बड़ा योगदान रहा है। वहीं भारत में मोदी सरकार बनने के बाद तो दिल्ली में तो इसका गढ़ बन गया है।
कब, कहां और कैसे मासोद ने किए काम
इसराइल अपने नागरिकों पर आने वाले किसी भी संकट का मुंहतोड़ जवाब देता है और ऑपरेशन एंटेबे या ऑपरेशन थंडरबॉल्ट ऐसे ही करारे जवाब थे। ऑपरेशन एंटेबे के दौरान इसराइली कमांडो और सेना ने एक दूसरे देश, युगांडा, के हवाई अड्डे में बिना अनुमति के घुसकर अपहृत किए गए अपने 54 नागरिकों को छुड़वा लिया था। आज भी दुनिया के सबसे बड़े नागरिक सुरक्षा अभियानों में ऑपरेशन एंटेबे का नाम सबसे ऊपर आता है। राजनेताओं की हत्या करना हो, दूसरे देश में अराजकता फैलानी हो या सत्ता परिवर्तन कराना हो, यह सभी मोसाद के ऑपरेशनों में शामिल होते हैं। इस एजेंसी के बारे में यह खास बात और है कि इसके एजेंटों की घुसपैठ दुनिया के दूसरे देशों की एजेंसियों में भी है। इसराइली सेना के एक बहुत तेजतर्रार अधिकारी रूवेन शिलोह को इसे स्थापित करने का श्रेय जाता है। इसके एजेंटों ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मोनिका लेविंस्की के साथ बातचीत को रिकॉर्ड कर लिया था और इनके सहारे बिल क्लिंटन तक को ब्लैकमेल किया था। मोसाद एक ऐसी खुफिया एजेंसी है जिसमें मनोवैज्ञानिक युद्ध (साइकोलॉजिकल वारफेयर) का पूरा एक विभाग है जो यह तय करता है कि ऑपरेशन के कौन से खुफिया हिस्से को मीडिया में लीक करना है ताकि दुश्मनों के दिलो-दिमाग में भय और बदहवासी पैदा की जा सके। मोसाद का पूरा एक विभाग जैविक और रासायनिक जहरों की खोज में लगा रहता है और इनके वैज्ञानिक हथियार भी बनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि फिलीस्तीन नेता यासर अराफात को मोसाद ने ऐसा जहर देकर मारा था कि उसकी पहचान तक नहीं की जा सकी। मोसाद के पास दुनिया के प्रत्येक नेताओं, प्रमुख व्यक्तियों और ऐसे लोगों की गोपनीय फाइलें बना रखी हैं जिनके पास किसी तरह की कोई सामरिक महत्व की जानकारी होती है। एक उदाहरण के लिए, एक बार मोसाद एजेंटों ने आतंकवादी की पत्नी को फूल भेजे थे और इसके मिनटों बाद ही उस उग्रवादी की हत्या कर दी गई थी। मोसाद एजेंटों ने अरब मूल के परमाणु वैज्ञानिकों की हत्याएं करने का भी काम किया है ताकि अरब देशों की परमाणु बम बनाने की महत्वाकांक्षाओं को रोका जा सके। उल्लेखनीय है कि मोसाद में महिलाएं भी काम करती हैं लेकिन महिला एजेंटों के लिए तय होता है कि उन्हें क्या काम करना है और क्या नहीं करना है। उनसे अपने टारगेटों के साथ सोने के लिए कभी नहीं कहा जाता है। वर्ष 1960 के दशक में मोसाद ने ईरान के शाह के शासन काल में खुफिया एजेंसी सावाक के साथ करीबी रिश्ते बना लिए थे। इन एजेंटों ने इराक में कुर्द विद्रोहियों की मदद की थी। भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ और मोसाद के रिश्ते सार्वजनिक हैं। नरेन्द्र मोदी के केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बाद से नई दिल्ली में मोसाद का ठिकाना बन गया है। रॉ और मोसाद मिलकर कोवर्ट ऑपरेशन्स चलाते हैं और इनमें से ज्यादातर का शिकार पाकिस्तान होता है। हालांकि भारत के फिलीस्तीनी नेताओं से अच्छे संबंध रहे हैं, लेकिन वर्षों तक मुस्लिम संगठनों ने आरोप लगाते रहे हैं कि रॉ, मोसाद के हाथों की कठपुतली बन गई है। खुफिया एजेंसियों के ऐसे बहुत से ऑपरेशनों की मीडिया तक को जानकारी नहीं होती है लेकिन 1980 के दशक के आखिरी वर्षों में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक खुफिया ऑपरेशन चलाया था जिसे दिल्ली हाईकोर्ट में उजागर किया गया था।